Cinema and culture complement and supplement each other. On the one hand cinema reflects macro and micro contours of culture but it also is a potent agent and vehicle of change of norms, beliefs, values and practices. In fact, cinema is itself an expression of culture. Cinema of Bharat is supposed to reflect Bharatiya in its real nature. A part of our cinema reflects our past and present but a significant section of the Cinema of Bharat seem to be unfair to Bharatiya ethos and values. Either the Bharatness is absent or it is presented in a distorted and derogatory manner.
A section of the cinema uses this potent medium to divide the society. Bharatiya Chitra Sadhna (BCS) aims to use the art and craft of this audio-video medium to present Bharat in a realistic manner so as to integrate the society rather than to create fissures in various sections. Cinema has to be used as a medium for the rejuvenation of the nation and to promote the concept of basic unity of the culture amongst the diversities.
Bharatiya Chitra Sadhna promotes making and screening of films glorifying our ancient knowledge system, values and ethos too through Chitra Bharati Film Festivals. CBFF organises national film festivals every alternate year. In addition, CBFF involves young film makers to make and exhibit short films at local levels as well.
Read Moreराम के अस्तित्व पर सर्वाधिक प्रश्न कहीं किए गए हैं, तो वो राम के देश भारत में ही किए गए है. उस देश में जहाँ राम आस्था हैं, विश्वास है. जन्म में राम हैं, मृत्यु में राम हैं. सुख में...
फिल्म शुरू होती है तो नैरेशन आता है- ‘इतिहास गवाह है कि चंद विभीषणों और जयचंदों की वजह से हम लोग गुलाम बनते आए हैं।’ आप हैरान होते हैं कि कैसे देश के साथ गद्दारी करने वाले मीर जाफर के...
दारिउश मेहरजुई के निर्देशन में बनी फिल्म “द काउ” में इजातोल्ला इंतेजामी ने मुख्य भूमिका निभाई है। ईरान के तब के शासक अयातोल्ला खोमैनी को यह फिल्म इतनी अच्छी लगी कि इस फिल्म को देखने के बाद उन्होंने ईरान में...
देशभक्ति दिखाने के लिए आवश्यक नहीं कि हाथ में बन्दूक उठाकर सीमा पर ही जाया जाए। हम जिस भी क्षेत्र में हैं, वहीं रहकर भी अपने राष्ट्र के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। आवश्यकता है तो दृढ़ इच्छाशक्ति की...
वर्ष १९४८ में जिद्दी के एकल गीत से लेकर १९८८ में वक्त की आवाज में आशा भोसले के साथ गाए युगल गीत तक के ४० वर्षों में २९०५ फिल्मी गीत, २६६ प्राइवेट एल्बम हिन्दी गीत और २२१ बंगाली गीत...
देर से ही सही, देश की तमाम जनजातियों, उनकी संस्कृति और गौरवशाली इतिहास को रजत पट पर अपेक्षित महत्व मिलने लगा है, हालांकि इस दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना शेष है। जनजाति महानायक भगवान बिरसा मुण्डा के जन्मदिन...
रंग और रोशनी से परदे की पहचान पुरानी है। कैमरा जानता है कि आसमान में बिखरी रंगीन रोशनी के साथ रात की स्याही का कितना अनुपात एक दर्शक के मन में गहरी पीड़ा अंकित कर देगा। पृष्ठभूमि में गूंजने के...
हिन्दी फिल्मों के सौ वर्ष से अधिक के इतिहास पर नजर डालें तो इसके आरंभिक दौर को फिल्मों के भक्तिकाल के तौर पर रेखांकित किया जाना चाहिए। उस दौर में पौराणिक पात्रों को लेकर सैकड़ों फिल्में बनीं। उस दौर में...
किसी भी राष्ट्र की स्वाधीनता तभी अमृत्व की यात्रा करती है जब उसके विभिन्न आयामों में स्वत्व का बोध हो। वे समस्त आयाम और विधायें स्वत्व से ओतप्रोत होनी चाहिए जिनसे व्यक्ति और समाज के आचरण प्रभावित होते हैं।...
चलचित्र के अंतर्गत हम सामान्यतः उन सभी मनोरंजन,सूचना देने वाले,विज्ञापन,धारावाहिकों, सिनेमा/फिल्में या जो भी चलते फिरते चित्र,कार्टून इत्यादि विषय वस्तु है, सभी को शामिल कर सकते हैं । इसी कडी मे सिनेमा जनसंचार मनोरंजन का एक लोकप्रिय माध्यम है। जिस...
चलचित्र के आविष्कार से उत्साहित होकर रचनात्मक व्यक्तियों नें विविध कलाओं के अवयवों और मुख्य रूप से कथा प्रस्तुतिकरण की एक सशक्त विधा नाटक के तत्वों के सम्मिश्रण से एक नया अवतार प्रस्तुत किया जिसे हम सिनेमा के नाम से...
सिनेमा राष्ट्र के पुनरुत्थान व सौंदर्ययुक्त कलात्मक स्वरों का एक अभिव्यक्त सेतु है। यह एक ऐसा माध्यम है जिसका प्रभाव तेजी से देश व समाज के लोगों पर होता है। विशेषकर युवा इससे अधिक प्रभावित होते हैं। इसलिए सिनेमा की...
कु छ लिल्में ‘लिलिक-प्रूि’ होती हैं। यानी दर्शकोों को इससे कोई िकश नही ों पड़ता लक लिलिक्स उनके बािे में अच्छा-बुिा, कै सा ललख िहे हैं। इन लिल्मोों में या तो लकसी बड़े स्टाि की बड़ी लिल्म आती है या...
भारत में सिनेमा माध्यम को आए हुए १०० से अधिक वर्ष हो चुके हैं और आज भी इस बात को लेकर चर्चा जारी है कि सिनेमा की उपयोगिता क्या है? केवल मनोरंजन? प्रबोधन? आजीविका का साधन? या फिर और भी...
भारत में सिनेमा की शुरुआत हुए लगभग १०९ वर्ष हो गए हैं। ३ मई, १९१३ में प्रदर्शित राजा हरिश्चन्द्र को जिसका निर्माण-निर्देशन ढूँढ़ीराज गोविन्द फाल्के ने किया था, भारत की पहली फिल्म माना जाता है। कालांतर में आप दादा साहब...
आज के वर्तमान युग में यदि हम अपने चारों ओर नज़रे घुमाएं तो हर चलता फिरता व्यक्ति मनोरंजन का साधन बना दिखाई देता है। कानों में हेड फोन, हाथों में मोबाइल पकडे एक अपनी ही दुनिया में मगन वो जीवन...
वैसे तो पश्चिमी जगत् में सिनेमा १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध लगभग १८८७-८८ में आरम्भ हुआ। वह आरम्भिक काल था और तकनीकी तौर पर सिनेमा से सम्बद्ध कई पहलुओं पर निरन्तर कार्य जारी रहा। १९वीं शताब्दी के अन्त में यूरोप, अमेरिका...