अमृत महोत्सव में स्वतन्त्र भारत के प्रताड़ित नायक को प्रतिष्ठित करती है रॉकेट्री

पंकुल शर्मा

देशभक्ति दिखाने के लिए आवश्यक नहीं कि हाथ में बन्दूक उठाकर सीमा पर ही जाया जाए। हम जिस भी क्षेत्र में हैं, वहीं रहकर भी अपने राष्ट्र के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। आवश्यकता है तो दृढ़ इच्छाशक्ति की और उस करप्ट सिस्टम से हार न मानने की जो हमारी मान मर्यादा, सम्मान, परिवार सब पर वार करता है। यही है फिल्म “रॉकेट्री : ए नम्बी इफैक्ट” का कथानक और वैज्ञानिक नम्बी नारायणन की जीवन गाथा।

एक ऐसी बायोपिक बनाना जो आपको हंसाती है, रुलाती है, जिसमें रोमांस है और विज्ञान भी और जिसे देखकर आवेष में आपकी मुट्ठी तन जाए, किसी रॉकेट सांइस से कम नहीं। फिर जब फिल्म का कथानक ही रॉकेट सांइस हो तो बात ही क्या।

“रॉकेट्री” एक त्रासद कहानी है केरल के उस महान वैज्ञानिक नम्बी नारायणन की जिसने अपने उज्जवल भविष्य, अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में शिखर पर पहुंचने के अवसर और अमेरिका के राष्ट्रपति के नासा से जुड़ने के प्रस्ताव को ठुकराकर भारत को अन्तरिक्ष की ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए अपने देश को चुना। और बदले में देश ने दिया उसे देशद्रोही का मेडल, पुलिस थाने में थर्ड डिग्री की यातना, परिवार का अपमान, समाजिक बहिष्कार, ५० दिन की जेल और वर्षों लम्बी न्यायालय की कार्यवाही।

रंगनाथन माधवन ने नम्बी नारायणन की भूमिका को जिस आवेग और गम्भीरता के साथ निभाया उसे देख चरित्र और अभिनय में अन्तर करना कठिन हो जाता है। युवा नारायणन के रूप में माधवन जितने सौम्य, उत्साही और नैसर्गिक लगे, एक प्रौढ़ नारायणन के रूप में उतने ही आकर्षक, सहज और स्वाभाविक। वयोवृद्ध नारायणन के रूप में तो माधवन ने मानो अभिनय के अन्तस को छू लिया। वास्तव में माधवन ने इस फिल्म में अभिनय मात्र नहीं किया बल्कि इस फिल्म को जिया है।

माधवन ने “रॉकेट्री: ए नम्बी इफैक्ट” की कहानी को लिखा है, इसे निर्देशित किया है, और इस फिल्म के निर्माण में उनका साथ दिया है उनकी पत्नी सरिता माधवन ने।

फिल्म के सभी पात्र, उनकी भूमिका चाहे कितनी भी लम्बी हो, चाहे वे अमेरिकी हो या रूसी या फ्रेञ्च या फिर भारत का कोई तमिल, मलयाली या पञ्जाबी, सभी अभिनेता पूरी तरह से अपने चरित्र में रचे हुए दिखे जो एक सफल निर्देशक के कौशल को दर्शाता है।

यह एक ऐसी पहली हिन्दी फिल्म भी है जिसमें सारे विदेशी चरित्र – रूसी, फ्रेञ्च, अमरिकी और ब्रिटिश – अपने संवाद हिन्दी में ही बोलते दिखे। वो भी टूटी-फूटी हिन्दी नहीं, बल्कि पूरी शालीनता के साथ सुस्पष्ट भाषा में। यह अपने आप में लीक से हटकर अनूठा और सरहानीय प्रयास है।

दक्षिण के प्रतीभावान संगीतकार सैम सी. एस. का पार्श्व संगीत आपको बान्धे रखता है। चाहे रॉकेट लॉञ्चिग पैड के दृश्य हों या प्रयोगशाला और नम्बी को कस्टडी में दी गई यातना के सीन, पूरी फिल्म में पार्श्व संगीत रोंगटे खड़े करने वाला है।

यह फिल्म नम्बी नारायणन के विराट व्यक्तित्व को दर्शाते हुए बताती है कि कैसे भारत के अन्तरिक्ष अनुसन्धान अभियान के जनक विक्रम साराभाई ने नम्बी नारायणन को गढ़ा था। साथ ही पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और अन्तरिक्ष में जाने वाले प्रथम व्यक्ति रूस के यूरी गागारिन के साथ नम्बी के घनिष्ठ सम्बन्धों के बारे में भी बताती है।

रॉकेट्री फिल्म मात्र उस त्रासदी को नहीं दिखाती जो हमारे देश के महान वैज्ञानिक नम्बी नारायणन ने झेली, बल्कि यह प्रश्न भी छोड़कर जाती है कि क्यों हमारे देश के दो महान वैज्ञानिकों – होमी जहांगीर भाभा और विक्रम साराभाई – की रहस्यमयी मृत्यु उस समय हुई जब देश अन्तरिक्ष के क्षेत्र में एक लम्बी छलांग लगाने वाला था।

जब नम्बी नारायणन भारत को क्रॉजेनिक इञ्जन बनाने में आत्मनिर्भर बनाने वाले थे तभी उनके साथ तो और भी घृणित षड्यन्त्र रचा गया। उनके चरित्र की हत्या का।

समय का चक्र घूमा और जब सत्ता परिवर्तन के साथ देश की दशा और भविष्य की दिशा बदली तो भारत के इस महान वैज्ञानिक ने अपना खोया सम्मान तो पाया ही, यह देश भी आज उनके बारे में जान सका। किन्तु माधवन यह दिखाने से चूक गए कि उस समय केरल में काँग्रेस की सरकार थी और नम्बी नारायणन को एक झूठे केस में फंसाने के कारण काँग्रेस के मुख्यमन्त्री कनोत करुणाकरण को अपनी कुर्सी तक गंवानी पड़ी थी।

जब देश स्वतन्त्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है तब यह फिल्म माधवन को सिनेमा के एक वास्तविक परफैक्निस्ट के रूप में भी स्थापित करती है।